आओ मैं मिलाती हूं खुद से मैं अहंकार हूं खुद में ही सिमटा हुआ एक विकार हूं. मेरे अस्तित्व में नागफनी के पौधे उगे हैं. अहंकार पर अनमोल विचार याद रखना हर बाप का एक बाप होता है. त्रस्नाओ से मुक्त होने के लिए जरुरी है की आप अहंकार से मुक्त हो जाए.
अहंकार को परे रखकर अपने रिश्तों को निभाएं। आइए, आज मैं एक छोटी सी कहानी के जरिए आपको अपने अंदर के अहंकार से मिलाती हूँ जो हमे पीछे धकेलने में लगा हुआ है।
एक बार की बात है किसी घने जंगल में एक गाय घास चरने के लिए गई. शाम ढलते ही वाली थी कि उसने देखा एक बाघ उसकी ओर दबे पांव आ रहा था वह डरकर इधर-उधर भागने लगी. गाय को भागते भागते एक तालाब दिखा वह उसके अंदर जा फसी उसके पीछे-पीछे बाघ भी तालाब में आ गया. तालाब में पानी कम था और कीचड़ बहुत थी जिसके कारण वे दोनों ही उसमे धसने लगे.
कुछ देर बाद गाय ने बाघ से पूछा क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघ ने गाय को धुरते हुए कहा मैं तो खुद ही जंगल का मालिक हू मेरा कोई मालिक नहीं हैं. फिर गाय ने कहा तुम्हारी इस शक्ति का यहाँ पर क्या उपयोग है बाघ ने कहा तुम भी तो यहाँ फंस गई हो. तुम्हारी हालत भी तो मेरी जैसी है इस पर गाय ने मुस्कुराते हुए कहा बिल्कुल नहीं, मेरा मालिक जब शाम को घर आयेगा और मुझे वहाँ ना पाकर तो वह मुझे यहाँ ढूंढने जरूर आएगा और इस कीचड़ से निकालकर अपने घर ले जाएगा. लेकिन तुम्हें कौन लेकर जाएगा ? कुछ देर बाद गाय का मालिक उसको ढूंढ़ते ढूंढ़ते तालाब तक आ गया गाय को कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले गया और जाते हुए दोनों ने बाघ की ओर देखा वह चाहकर भी उसको नहीं निकाल पाएँ क्योंकि उनको अपनी जान का खतरा था. ऐसे मे बाघ अकेला वही वसा रह गया.
मैं ही सब हू मुझे किसी के सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं है. यही अहंकार है और यही से विनाश का बीजारोपण होता है. ऐसा करने से व्यक्ति अपने सभी रिश्ते नाते को खो देता है और अंत मे वह व्यक्ति खुद को अकेले पाता है.